किसी 'खास' की जानकारी भेजें। सरकारी स्कूलों पर लौटता भरोसा: छह
यह शिक्षा के निजीकरण का दौर है। यह देश के अभावग्रस्त परिवारों के बच्चों से उनके डॉक्टर, इंजीनियर बनने के सपनों के छिन जाने का दौर है। यह महँगी फीस, महँगे स्कूल और उम्दा पढ़ाई के नाम पर अमीर तथा गरीब बच्चों के बीच शिक्षा की खाई को और भी ज्यादा चौड़ा कर देने का दौर है। यह अमीरों के बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूलों का दौर है। इसलिए, यह गरीब बच्चों के लिए सरकारी स्कूलों को उनके हाल पर छोड़ देने का दौर है। इस दौर में हम देख रहे हैं कि सरकारी स्कूलों की हालत किस तरह बद से बदतर बना दी जा रही है। लेकिन, जरा ठहरिए! यह दूर—दराज के ग्रामीण इलाकों में ऐसे शिक्षक और समुदायों के साझा संघर्षों का भी दौर है जो सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता की नींव बन रहे हैं। महाराष्ट्र के सांगली जिले के गाँवों से ऐसे ही स्कूलों की कहानियाँ, जिनमें बदलाव की आहट साफ सुनाई दे रही हैं। फिलहाल ऐसे छह स्कूलों की कहानियों को दर्ज किया गया है। यहाँ प्रस्तुत है पाँचवी कहानी।
कोठीली गाँव
किसी एक छोटे गाँव की प्राथमिक शाला की अपनी वेबसाइट होना विशेष भले ही न लगे, लेकिन क्या यह कल्पना की जा सकती है कि इस शाला की वेबसाइट महाराष्ट्र राज्य के शिक्षा विभाग की वेबसाइट के समानान्तर लोकप्रियता हासिल कर रही हो! वह भी महज सात महीने में।
महाराष्ट्र के सांगली जिले की कोठीली गाँव की प्राथमिक शाला के सहायक शिक्षा पीडी शिंदे ने एक ऐसी ही साइट तैयार की है। इस साइट पर बीते साल जून से अब तक करीब सात लाख विजिटर जुड़ चुके हैं। साइट पर विजिटर की गणना करने वाला गजट बताता है कि इससे हर महीने औसतन एक लाख नए विजिटर जुड़ रहे हैं। इतने कम समय में इतनी लोकप्रियता ने खासतौर से राज्य की शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी सूचनाओं से ताल्लुक रखने वालों का ध्यान इस ओर खींचा है। इस साइट की खासियत यह है कि इसकी पूरी सामग्री सरल और अनौपचारिक भाषा में है। फिर यह पूरी तरह मराठी भाषा की साइट है। स्कूली शिक्षा से जुड़ी हर आवश्यक जानकारी और सूचना साइट पर अपडेट जाती है।
इस साइट का अपना मोबाइल ऐप और यू ट्यूब चैनल भी है।
इस साइट की लिंक है : www.pdshinde.in
इस शृंखला की पिछली पाँच कहानियाँ यहाँ पढ़ी जा सकती हैं मादलमुठी शाला रामनला बस्ती शाला यमगार बस्ती शाला तुलाराम बुआचा शाला यमाजी पाटलीची वाड़ी शाला
शिरीष खरे, पुणे