किसी 'खास' की जानकारी भेजें। शंकरलाल मीणा : कठिन को सरल समझकर करें..
मेरा विद्यालय राजकीय प्राथमिक विद्यालय, बोयड़ा, तहसील मुख्यालय से 6 किमी दूर दक्षिण बोयड़ा गाँव के बाहर मुख्य रोड़ पर स्थित है। विद्यालय में 58 विद्यार्थियों का नामांकन है। जिसमें 36 छात्र तथा 26 छात्राएँ है। विद्यालय में दो कमरे, एक ऑफिस, एक रसोई व बरामदा व टीन शैड बना हुआ है। बच्चों के खेलने के लिए झूले एवं फिसल पट्टी बनी हुई है। विद्यार्थियों के लिए अलग-अलग मूत्रालय बने हुए हैं। पानी पीने के लिए टंकी है। विद्यालय के तीन और दीवार बनी हुई है। प्रांगण में अनेक प्रकार के पेड़-पौधे लगे हुए हैं। बोयड़ा में 70-75 मकानों की आबादी है। जिसमें एस.सी., एस.टी. के लोग रहते है। विद्यालय के प्रति गाँव वालों का अच्छा सहयोग बना हुआ है।
विद्यालय में मेरी भूमिका
इस विद्यालय में मेरी प्रथम नियुक्ति दिनांक 01.10.2008 को प्रबोधक पद पर हुई। मुझे कक्षा 1से 5 तक गणित विषय अध्ययन करवाने की जिम्मेदारी दी गई। साथ ही विद्यालय की शैक्षिक एवं सहशैक्षिक गतिविधियों की जिम्मेदारी दी गई।
प्रयास से पहले की शैक्षिक स्थिति
1. आमतौर पर विद्यार्थी गणित विषय में कमजोर थे।
2. विद्यार्थियों की गणित विषय में रुचि नहीं थी।
3. शिक्षण का तरीका विद्यार्थियों के अनुकूल नहीं था।
4. विद्यार्थियों का ज्ञान न्यूनतम था।
विमर्श
हालाँकि विद्यालय में गणित का नियमित शिक्षण करवाया जाता था। सम्बन्धित शिक्षक पूरा परिश्रम करते थे। परन्तु अपेक्षित परिणाम नहीं आ रहे थे। विद्यार्थियों व शिक्षकों से बातचीत के बाद प्रमुख कारण उभरकर सामने आएः
- जब विद्यार्थियों को गणित विषय का अध्ययन करवाया जाता था तो वे पूरे ध्यान व लगन के साथ शिक्षण कार्य में रुचि नहीं लेते थे।
- विद्यार्थियों को जो शिक्षण कार्य करवाया जा रहा था वह उनके स्तरानुकूल नहीं था। उदाहरण - जब तक विद्यार्थियों को पहाड़े का ज्ञान नहीं होगा, तब तक वह गुणा करने की प्रक्रिया में निपुण नहीं होंगे। गुणा सिखाने के लिए पहाड़ों का अध्ययन करवाना जरुरी है।
- जिस विधियों से विद्यार्थियों का शिक्षण कार्य करवाया जा रहा था, वह विधियाँ अरुचिकर थीं। उदाहरण - विद्यार्थियों को इबारती एवं समय मापन सम्बन्धित लाभ-हानि वाले प्रश्नों को जब तक मौखिक व्यवहारगत तरीके से नहीं समझाएँगे तब तक बच्चों के समझ में कम आता है।
- गणित विषय का अध्ययन करवाते समय टी.एल.एम. सामग्री का उपयोग नहीं करने पर बच्चों को गणित विषय का ज्ञान करवाने में परेशानी आती है। उदाहरण - अगर हमें विद्यार्थियों को संख्या ज्ञान करवाना है, तो फ्लेश कार्डों का प्रयोग करना करना चाहिए। जैसे फ्लेश कार्ड को दिखाते हुए बच्चों से संख्या के बारे में पूछने पर बच्चे रुचिपूर्वक भाग लेंगे। अंकों को बदल-बदलकर लिखना एवं संख्या ज्ञान में निपुण करना।
- विद्यार्थियों के मन में गणित विषय के प्रति कठिनता का भय भरा हुआ था।
मैंने तय किए लक्ष्य
- बच्चों को संख्या ज्ञान के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देना। उदाहरण - बच्चों से संख्या ब्लैक बोर्ड पर लिखवाना व ब्लैक बोर्ड पर लिखित संख्या को पहचानना व बोलना।
- संख्या ज्ञान के लिए बच्चों को इकाई, दहाई व सैंकड़ा का सम्पूर्ण ज्ञान करवाना।
- गणितीय संक्रियाओं के लिए बच्चों को पहाड़ों का ज्ञान करवाना।
- गणित विषय सीखने में आने वाली कठिनाईयों का सम्पूर्ण ज्ञान करवाना।
तय की गई अपेक्षित स्थिति
- कक्षा 1 व 2 में बच्चों को सम्पूर्ण संख्या ज्ञान, उदाहरण - जब बच्चों को किसी संख्या को लिखने या पहचानकर बोलने के लिए कहा जाए तो तुरन्त बता सके। जैसे जब पूछा जाए कि संख्या 72 में दहाई का अंक कौन-सा है तो बच्चों द्वारा तुरन्त जवाब देना कि दहाई के अंक पर 7 है और इकाई के स्थान पर 2 है। जब बच्चों से पूछा जाए कि 7 दहाई में कितनी इकाई होती है। बच्चों द्वारा तुरन्त जवाब देना 70 इकाई होती है।
- कक्षा 3, 4 व 5 के बच्चों को सम्पूर्ण संख्या ज्ञान हो।
- गणितीय संक्रियाओं को हल करने की दक्षता हो जैसे - लाभ-हानि, स्थानीयमान, आरोही-अवरोही विस्तार, विस्तारित समय, मापन सम्बन्धी प्रश्न, मुद्रा सम्बन्धी, रेखा गणित का सामान्य ज्ञान देना, ऐकिक नियम, भिन्न सम्बन्धी प्रश्नों की जानकारी देना।
अपेक्षित स्थिति प्राप्त करने के लिए योजना
- प्रथम तीन माह बच्चों को संख्या ज्ञान/पहाड़े गिनती का सम्पूर्ण ज्ञान करवाना।
- बच्चों को संख्या ज्ञान करवाते समय टी.एल.एम. सामग्री का उपयोग करना।
- अधिक से अधिक कार्य ब्लैक बोर्ड पर बच्चों से करवाना।
- होशियार विद्यार्थी के साथ कमजोर विद्यार्थी को बैठाना।
- बच्चों को गृहकार्य देना।
- गृह कार्य की नियमित जाँच करना।
- साप्ताहिक परीक्षा में अधिक अंक लाने वाले विद्यार्थी को पुरस्कृत करना।
- प्रार्थना सभा में गणित सम्बन्धी सामान्य जानकारी देना।
प्रयास के फलस्वरूप विद्यार्थियों में आया हुआ परिवर्तन
- संख्या ज्ञान में दक्षता हासिल हुई - प्रयास के फलस्वरूप बच्चों में यह परिवर्तन आया कि कक्षा 2 के विद्यार्थी भी संख्या पहचानने, बोलने, लिखने लगे हैं।
- नियमितता - बच्चों में प्रयास के फलस्वरूप नियमितता बड़ी है। विद्यार्थियों को जो कार्य दिया जाता है, उसे समय पर पूरा व सही करके लाते हैं।
- अनुशासन - प्रयासों के फलस्वरूप बच्चों में अनुशासन में वृद्धि हुई है। कक्षा में बच्चे अनुशासन में रहते हुये अपना कार्य करते रहते हैं एवं अध्यापन कार्य करवाते समय पूर्ण अनुशासन में रहते हैं।
- अध्ययन में रुचि - प्रयासों के फलस्वरूप गणित विषय का अध्ययन करने में विद्यार्थी रुचि लेने लगे हैं। गृह कार्य के लिए कहना और गृह कार्य समय पर जाँच करवाना। होशियार विद्यार्थियों द्वारा कमजोर विद्यार्थियों को सवाल आदि रुचि पूर्ण समझाना।
- समय का उपयोग - प्रयासों के फलस्वरूप विद्यार्थी समय की महत्ता को समझने लगे हैं। कक्षा में अध्यापक नहीं होने की स्थिति में अपना काम करते रहते हैं। विद्यालय समय पर आते हैं।
- समस्या हल करने का प्रयास करने में वृद्धि - प्रयासों के फलस्वरूप विद्यार्थी समस्या को हल करने का प्रयास करने लगे हैं। कक्षा में एक दूसरे का सहयोग लेने लगे हैं।
सिद्धान्त
- गणित विषय में नियमितता आवश्यक है।
- विषय का सरलीकरण कर समस्याओं के समाधान हेतु विद्यार्थियों को स्वयं को प्रेरित करना।
ठोस प्रमाण
मेरे प्रयासों में ठोस प्रमाण यह है कि छोटी कक्षाओं में नियमित शिक्षण कार्य नहीं करवाने पर बच्चे उसे विषय को पूर्ण तरीके से नहीं सीख पाते हैं। उदाहरण - हमें बच्चों से संख्या ज्ञान के लिए अध्ययन करवाना है। बच्चे उस दक्षता को हासिल नहीं कर लेते, तब तक आगे अध्ययन नहीं करवाना चाहिए एवं उसी दक्षता को बार-बार समझाना चाहिए। नियमितता किसी भी ठोस कार्य को सरल बना देती है।
विषय का सरलीकरण कर समस्याओं के समाधान हेतु विद्यार्थियों को स्वयं प्रेरित करना। किसी भी विषय का ज्ञान करवाने से पहले उस विषय का बैसिक ज्ञान विद्यार्थियों में होना जरूरी है। उदाहरण हमें हिन्दी विषय में विद्यार्थियों को पाठ पढ़ाना है तो पहले व्यंजन, स्वरों का ज्ञान करवाना चाहिए। इनके ज्ञान के अभाव में विद्यार्थी किताब का अध्ययन नहीं कर सकता। इसी प्रकार गणित विषय में विद्यार्थियों को गणितीय सवाल करवाने से पहले संख्या ज्ञान गणितीय संक्रियाओं के बारे में ज्ञान होना जरूरी है।
प्रयासों की उल्लेखनीय बातें -
- जब किसी कार्य को पूरी मेहनत व लगन से किया जाए तो उस कार्य में सफलता अवश्य हासिल होती है।
- किसी भी कार्य को कठिन नहीं समझना चाहिए।
- कठिन कार्य को सरल कार्य समझ कर करें।
- अध्ययन कार्य करवाते समय हमें समस्त बच्चों का सहयोग लेते हुए एवं बच्चों की भावना को समझते हुए शिक्षण कार्य करवाना चाहिए।
- शिक्षण करवाते समय शिक्षक को अधिक से अधिक खेल व बाल कविताओं के द्वारा शिक्षण करवाना चाहिए।
शंकरलाल मीणा
- (बी.ए., बी.एस.टी.सी.)
- प्रबोधक
- राजकीय प्राथमिक विद्यालय, बोयड़ा, पं.स. देवली जिला टोंक, राजस्थान
- रुचि: छोटे बच्चों को शिक्षण करवाना,नृत्य करना।
वर्ष 2009 में राजस्थान में अपने शैक्षिक काम के प्रति गम्भीर शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘बेहतर शैक्षणिक प्रयासों की पहचान’ शीर्षक से राजस्थान प्रारम्भिक शिक्षा परिषद तथा अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन द्वारा संयुक्त रूप से एक कार्यक्रम की शुरुआत की गई। 2010 तथा 2011 में इसके तहत सिरोही तथा टोंक जिलों के लगभग 50 शिक्षकों की पहचान की गई। इसके लिए एक सुगठित प्रक्रिया अपनाई गई थी। शंकरलाल मीणा वर्ष 2009-10 में बेहतर शैक्षणिक प्रयास के लिए चुने गए हैं। यह टिप्पणी पहचान प्रक्रिया में उनके द्वारा दिए गए विवरण का सम्पादित रूप है। लेख में आए विवरण उसी अवधि के हैं। टीचर्स ऑफ इण्डिया पोर्टल टीम ने शंकरलाल मीणा से उनके काम तथा शिक्षा से सम्बन्धित मुद्दों पर बातचीत की। वीडियो इस बातचीत का सम्पादित अंश हैं। हम शंकरलाल मीणा, राजस्थान प्रारम्भिक शिक्षा परिषद तथा अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, टोंक के आभारी हैं।