किसी 'खास' की जानकारी भेजें। लीना विजय : अधिगम अर्थात व्यवहारगत परिवर्तन
अधिगम अर्थात व्यवहारगत परिवर्तन। विद्यार्थियों में अधिगम सरलता से हो तथा सीखा गया ज्ञान स्थायी हो, इसके लिए शिक्षक एवं शिक्षार्थी, दोनों की तरफ से प्रयास अपेक्षित है। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में कुछ सरल सिन्द्धातों का अनुकरण करते हुए अधिगम को अधिक प्रभावी व स्थायी बनाया जा सकता है। स्वयं करके सीखना, नवाचारों द्वारा सीखना, विद्यार्थियों की रुचियों को जाग्रत करते हैं। एक सफल एवं अनुभवी शिक्षक की यही पहचान है कि वह विद्यार्थियों के स्तर तक जाकर, उनके बालमन की जिज्ञासाओं को सरल तरीके से, हर सम्भव रूप से शान्त करने का प्रयास करता है। विद्यार्थियों में आए सकारात्मक परिवर्तन एवं सुधार द्वारा स्वयं शिक्षक भी आत्म संतुष्टि का अनुभव करता है।
मेरा स्कूल और मैं
बनस्थली जयपुर से 70 किलोमीटर दूर है। यहाँ दो राजकीय उच्च प्राथमिक तथा एक उच्च माध्यमिक विद्यालय है। मैं राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत हूँ। विद्यालय 2005 में प्राथमिक विद्यालय से उच्च प्राथमिक विद्यालय में क्रमोन्नत हुआ है।
विद्यालय में कक्षा-कक्षों की संख्या पर्याप्त है। पानी की पर्याप्त व्यवस्था है। खेल का मैदान है। कुल मिलाकर विद्यालय की भौतिक स्थिति सामान्य है।
मुझे प्रारम्भ से ही विज्ञान,गणित विषय के अध्यापन का दायित्व दिया गया। साथ ही सह-शैक्षणिक दायित्व के अन्तर्गत प्रार्थना सभा का आयोजन एवं शैक्षणिक दायित्व में परीक्षा प्रभारी बनाया गया।
विद्यालय में मेरी भूमिका मुख्य रूप से शिक्षिका की है। किन्तु परिस्थिति के अनुसार मेरी भूमिका परिवर्तित होती रहती है। प्रार्थना में मार्गदर्शिका के रूप में तथा कक्षा-कक्ष में शिक्षक, सहयोगी, मार्गदर्शिका,सहेली के रूप में होती है। एस.डी.एम.सी. में सचिव के रूप में, विद्यालयकी साफ-सफाई करवाने में व्यवस्थापक के रूप में, पोषाहार में प्रबन्धक के रूप में होती है।
विद्यार्थियों को जैसा मैंने पाया
जब मैंने यहाँ प्रयास प्रारम्भ किया तब अधिकांश विद्यार्थियों को हिन्दी के सामान्य शब्दों का ज्ञान था। कुछ विद्यार्थियों को लिखना आता था। गणित की गिनती आती थी, मौखिक जोड़ कर लेते थे। गणित में स्थानीय मान, विस्तारित रूप, उल्टी गिनती, गुणा, हासिल के जोड़, अन्तर नहीं कर पाते थे। गणित की विभिन्न आकृतियों को नहीं जानते थे। गुणा नहीं कर सकते थे। पहाड़े दस तक मौखिक बोलना आता था। दो का पहाड़ा आता था लेकिन दो गुणा सात कितना होता है, यह नहीं बता सकते थे।
विज्ञान में जिन जानवरों, पेड़-पौधों को देखा है उनके नाम बता पाते थे। पौधों के विभिन्न भागों के नाम पूछे जाने पर नहीं बता पाते थे। पर्यावरण से सम्बन्धित सामान्य शब्दावली जैसे परिवार, समाज, वायु, जल, मृद, ईंधन आदि से अपरिचित थे।
कुछ शिक्षण के पश्चात पौधों के विभिन्न भागों के चित्र व नामांकन करने को कहा गया तो उनमें कुछ विद्यार्थिंयों द्वारा पत्ती-फूल लिखा गया।
मैंने सोचा और किया
इन सभी को देखकर मुझे लगा कि कुछ प्रयास इस तरह किए जाएँ कि उनका ज्ञान स्थायी हो, वे विषयवस्तु को अच्छी तरह समझ पाएँ। विज्ञान की विषयवस्तु को जहॉं तक सम्भव हो प्रयोग द्वारा समझाया जाए। जहाँ प्रयोग नहीं करवा जा सकें, वहाँ उसे चार्ट द्वारा, मॉडल बनाकर, बाजार से खरीदी गई अधिगम सामग्री द्वारा , सहेलियों से बात करके, शिक्षिकाओं से अंत:क्रिया करके, विषयवस्तु को सरल भाषा में प्रस्तुत कर समस्या को हल करने का प्रयास किया।
गणित विषय में आकृतियाँ जो कि विद्यालय में उपलब्ध थीं, विद्यार्थियों को देकर उनके बारे में उनसे पूछा। किसी गणितज्ञ ने कहा है, ‘कि गणित की प्रकृति अमूर्त है, जैसे ही उसे मूर्त रूप प्रदान किया जाता है वह गणित नहीं रह जाता।’ लेकिन अमूर्त को समझना और समझाना दोनों ही कठिन कार्य है। इसके लिए मानसिक स्तर उच्च होना चाहिए। इसलिए उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित विषय के अधिगम हेतु उसे मूर्त रूप देना आवश्यक है। गणित में गिनती लिखने से पूर्व यदि बच्चों को पत्थर, माचिस की तीली, कन्चे से गिनना सिखाया जाए तो विद्यार्थी जल्दी सीख सकते हैं। गणित की विषयवस्तु को समझाने के लिए विद्यार्थियों के बीच बैठकर समझाना, विद्यार्थियों के साथ सहयोगी के रूप में कार्य करना,चार्ट द्वारा समझाना, शिक्षण से पूर्व योजना बनाना, उदाहरणों से निष्कर्ष निकालना आदि प्रयास करने का तय किया।
समस्या के सन्दर्भ में मैंने निम्न लक्ष्य निर्धारित किए-
- विद्यार्थियों की आधारभूत कमियों को दूर करना।
- विद्यार्थियों के अधिगम स्तर में वृद्धि करना
- विद्यार्थियों एवं शिक्षिका के मध्य अंत:क्रिया को बढ़ाना।
- विद्यार्थियों में चित्र-कौशल में वृद्धि करना।
- विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना।
इसके लिए मैंने एक योजना बनाई। मैंने तय किया कि गणित व विज्ञान में अधिगम कराने हेतु समय अधिक लगता है, अत: गणित व विज्ञान विषय के साथ कला जैसे विषय को लिया जाए जो कि मनोरंजक है, कोर्स कम होता है और विषयवस्तु सरल।
समूह में कार्य करने को अधिक महत्वपूर्ण समझा जाए। इसके लिए विद्यार्थिंयों को तीन स्तरों में बांटा। उच्च स्तर में वे विद्यार्थी जो शीघ्रता से विषयवस्तु को ग्रहण कर लेते हैं। मध्य स्तर में वे जिन्हें विषयवस्तु समझने में थोड़ा समय लगता है। और निम्नस्तर पर वे जिन्हें विषयवस्तु समझने में कठिनाई होती है। तीन स्तरों से एक-एक विद्यार्थी लेकर एक समूह बनाया। इसका मुख्य उद्देश्य समूह में कार्य करने के कौशल को विकसित करना रहा।
वातावरण निमार्ण करने हेतु तथा जिस समय पर शिक्षकों की कमी हो तब कक्षा एक से पाँच तक विद्यार्थियों के साथ कक्षा आठ के विद्यार्थिंयों को साथ बिठाकर गीत,कविता, पहाड़े आदि का आनन्ददायक शिक्षण करवाया।
कुछ उदाहरण
जन्तु कोशिका या वनस्पति कोशिका : जब हम यह पाठ पढ़ रहे थे तब मैंने इसे चार्ट से समझाने की कोशिश की। एक विद्यार्थी ने यह सवाल पूछा कि जब यह दोनों सजीवों में पाई जाती है तो इनमें अन्तर क्यों है व इनकी संरचना अलग क्यों है। इसका उत्तर मुझे नहीं पता था। मैंने अगले दिन इसका उत्तर बताने के लिए कहा। मैं अपनी एक सहेली के घर गई जो बी.एससी. बॉयलॉजी से है। उससे चर्चा की। उसने बताया कि वनस्पति कोशिका में कोशिका भित्ति सेज्युलोज की बनी होती है। जबकि जन्तु कोशिका में कोशिका झिल्ली होती है जो वसा तथा प्रोटीन की बनी होती। वनस्पति कोशिका में क्लोरोप्लास्ट के कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से भोजन बनता है यानी पौधे अपना भोजन खुद बनाते हैं। जबकि जन्तु भोजन के लिए अन्यों पर निर्भर रहते हैं। आवश्यकता तथा परिस्थिति के अनुसार इनकी संरचना में अन्तर रहता है। अगले दिन मैंने इसी आधार पर विद्यार्थियों को समझाकर सतुष्ट कर पाई।
चन्द्रमा की कलाओं को समझाने के लिए चार्ट का प्रयोग किया। किन्तु गोलीय दर्पण तथा उससे सम्बन्धित शब्दावली को समझाने के लिए चार्ट पर्याप्त नहीं लगा। उसमें ध्रुव व वक्रता केन्द्र में क्या अन्तर है इसे चार्ट द्वारा समझा नहीं पाई। समझाने के लिए एक सफेद गेन्द लेकर उसके कुछ भाग को काटकर बाहर वाले भाग पर काला रंग कर दिया। फिर यह बताया कि जो गेन्द का केन्द्र है, उसे वक्रता केन्द्र कहते हैं जबकि जो भाग कटा है उसके मध्य बिन्दु केन्द्र को ध्रुव कहते हैं। इस प्रकार विद्यार्थियों को वक्रता केन्द्र व ध्रुव के मध्य अन्तर समझा पाई।
एड्स, मासिक धर्म, किशोरावस्था में सहज कैसे रहें, इस प्रकार के प्रकरण के लिए अभिभावकों से, समूह में सहेलियों से, शिक्षिकाओं से चर्चा करने के लिए कहा फिर कक्षा में चर्चा कर पढ़ाया। इससे सम्बन्धित जानकारी लायब्रेरी से प्राप्त करके, समाचार पत्रों से जानकारी एकत्रित करके स्क्रेप बुक तैयार करवाई। यह कार्य सामूहिक रूप से करवाया गया। यह काफी मनोरंजक व उत्साहवर्धक रहा। बाद में उन्हें विभिन्न प्रकरणों से सम्बन्धित प्रश्न दिए गए, जिसके उत्तर उन्होंने बातचीत के आधार पर दिए। जिसमें कुछ मौलिक उत्तर भी सामने आए। ऐसे और कई उदाहरण हैं।
प्रयास से जो परिवर्तन हुए
- उनमें स्वयं करके सीखने की प्रवृति विकसित हुई।
- समस्या को विद्यार्थियों द्वारा हल करने की कोशिश की जाने लगी।
- छोटे प्रयोगों के लिए विद्यार्थी स्वयं सामग्री एकत्रित करने की कोशिश करने लगे।
- जानकारी एकत्र करने के लिए लायब्रेरी की पुस्तकें टटोलने लगे। इससे लायब्रेरी की उपयोगिता बढ़ी।
- समाचार पत्र से जानकारी लेने के लिए समाचार पत्र पढ़ने की प्रवृति का विकास हुआ।
- कक्षा में समूह में कार्य करने की क्षमता का विकास हुआ। समूह में चर्चा करने से शब्द भण्डार बढ़ा। एक-दूसरे की समस्या को समझा व मदद करने की कोशिश की।
- विषय के प्रति बच्चों की समझ बढ़ी।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ।
- विद्यार्थियों के चित्र कौशल में वृद्धि हुई।
- शिक्षिका तथा विद्यार्थियों के बीच अंत:क्रिया बढ़ी, जिससे शिक्षिका के प्रति विद्यार्थियों में जो भय था वह दूर हुआ।
- अधिगम स्तर बढ़ा है। विषयवस्तु को केवल पाठ्यपुस्तक से न समझकर अन्य किताबों से जानने की कोशिश भी करने लगे हैं। मुझसे भी किताबो की माँग करते हैं।
- विद्यालय के वातावरण में भी परिवर्तन आया है। दूसरी कक्षाओं के विद्यार्थी भी अन्य शिक्षिकाओं को पढ़ाने के लिए बुलाते हैं और उनसे पाठ सम्बन्धी प्रश्न भी पूछते हैं।
- अभिभावकों की सोच भी विद्यालय के प्रति सकारात्मक हुई है। जो जानकारी विद्यार्थियों को लाने के लिए कहा जाता है, उस पर विद्यार्थी अपने अभिभावकों से चर्चा करते हैं।
- अन्य शिक्षिकाओं के दृष्टिकोण में भी अन्तर दिखने लगा है। वे भी मानने लगी हैं कि, मारने से अधिगम नहीं कराया जा सकता है। बल्कि अधिगम कराने के लिए व उसे स्थायी बनाने के लिए विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं को शान्त करना होगा।
ऐसे और भी तमाम छोटे-छोटे परिवर्तन हुए हैं। अन्त में संक्षिप्त में कहूँ तो सार्थक और सफल अधिगम के लिए तीन बातें मुख्य हैं :
- करके सिखाना
- अभ्यास के मौके देना
- शिक्षक व विद्यार्थी के बीच अंत:क्रिया को बढ़ावा देना
लीना विजय
- शिक्षिका, राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, बनस्थली,टोंक
- एम.एससी.(भौतिक विज्ञान),एम.एड.एजूकेशनल टेक्नॉलोजी
- 2005 से शिक्षिका
- कविता कहना, गीत गाना अच्छा लगता है
- स्काउट एंड गाइड के काम में रुचि है
वर्ष 2009 में राजस्थान में अपने शैक्षिक काम के प्रति गम्भीर शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘बेहतर शैक्षणिक प्रयासों की पहचान’ शीर्षक से राजस्थान प्रारम्भिक शिक्षा परिषद तथा अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन द्वारा संयुक्त रूप से एक कार्यक्रम की शुरुआत की गई। 2010 तथा 2011 में इसके तहत सिरोही तथा टोंक जिलों के लगभग 50 शिक्षकों की पहचान की गई। इसके लिए एक सुगठित प्रक्रिया अपनाई गई थी। लीना विजय वर्ष 2009-10 में बेहतर शैक्षणिक प्रयास के लिए चुनी गई हैं। यह टिप्पणी पहचान प्रक्रिया में उनके द्वारा दिए गए विवरण का सम्पादित रूप है। लेख में आए विवरण उसी अवधि के हैं। टीचर्स ऑफ इण्डिया पोर्टल टीम ने लीना विजय से उनके काम तथा शिक्षा से सम्बन्धित मुद्दों पर बातचीत की। वीडियो इस बातचीत का सम्पादित अंश हैं। हम लीना विजय, राजस्थान प्रारम्भिक शिक्षा परिषद तथा अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, टोंक के आभारी हैं।
टिप्पणियाँ
लीना जी का काम प्रेरणा देने
लीना जी का काम प्रेरणा देने वाला है .उनके अनुभव से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. मेरी बधाई
अपने शैक्षिक काम के प्रति सजग
अपने शैक्षिक काम के प्रति सजग लीना जी जैसी शिक्षिकाओं की हमारे देश को आवश्यकता है उनके अनुभव प्रेरणादायक हैं।