किसी 'खास' की जानकारी भेजें। निमाई चन्द माझी : हौसला ही उड़ान देता है
ऊधमसिंह नगर से खटीमा की ओर 60-70 किलोमीटर की यात्रा करना सुखद लगता है। भौगोलिक रूप से ऊधमसिंह नगर उत्तराखण्ड में तलहटी (समतल) का इलाका है। यह इतना समतल है कि आश्चर्य में डाल देता है। सड़क के दोनों तरफ खड़ी गेहूँ की लहलहाती सुनहली बालियाँ यहाँ की उपजाऊ धरती के बारे में स्वतः ही बताती हैं। खेत, बगीचे, घुमावदार रास्ते पार करते हुए हम निमाई चन्द माझी के स्कूल में पहुचते हैं। निमाई चन्द माझी का स्कूल कहना इसलिए लाजमी है, क्योंकि यह स्कूल उनके सपनों में पलता और साँसों में जीता है।
स्कूल मुख्य सड़क से करीब 5 किलोमीटर भीतर है। स्कूल के आसपास जंगल खेत और नदी है। चार कमरों का बेहद साफ-सुथरा और सजा हुआ स्कूल है। संसाधन तो यहाँ भी उतने ही दिखाई देते हैं जितने सब जगह हैं, पर यहाँ एक जज्बे की भी बात है जो यहाँ की आबो-हवा ही बताती है। निमाई चन्द माझी का स्कूल का चर्चा जिले भर में है।
एक कक्षा के अधखुले दरवाजे के भीतर देखा, एक शिक्षक अपनी पगथलियों से मीटर का कॉनसेप्ट बच्चों को समझा रहा है। अनुमान लगाया कि यही निमाई चन्द माझी होने चाहिए, क्योंकि शेष दोनों शिक्षक महिलाएँ है। हम स्कूल के प्राचार्य कक्ष में जाकर उनकी प्रतीक्षा करने लगे। कक्षा समाप्त होने पर निमाई चन्द आए, उनसे परिचय हुआ। बातचीत शुरू हुई।
निमाई चन्द बताते हैं, ‘मैं जब 1995 में पदोन्नति पर यहाँ आया था, तब स्कूल में पहली से पाँचवी तक केवल 26 बच्चे थे। गाँव में एक निजी स्कूल भी था। गाँव और उसके आसपास के सभी बच्चे उसी स्कूल में पढ़ने जाते थे। बच्चों को शासकीय स्कूल में लाना ही पहली बड़ी चुनौती थी। मैंने घर-घर जाकर बात की। समझाया कि यदि आप अपने बच्चों को इस स्कूल में नहीं भेजेंगे तो यह स्कूल बन्द हो जाएगा। सबकी यही शिकायत थी कि शिक्षक तो समय पर स्कूल तक नहीं आते हैं, वह बच्चों को पढ़ाएँगे क्या? बात तो सही थी।
मैं पूरी गर्मी की छुट्टियों में पाँच-छह बार घर-घर गया। कुछ नए एडमिशन तो हुए पर वह बहुत कम थे। मैंने हिम्मत नहीं हारी। पूरा साल हाथ में था स्कूल को लोगों की अपेक्षा में खरा उतरने लायक बनाने का। सबसे पहले मैंने स्कूल के शिक्षकों से बात की। सबसे पहले मैंने खुद ही समय पर आना शुरू किया। बारिश में तो बहुत मुश्किल होती थी। मैं हाफपैंट पहनकर साइकिल कंधे पर उठाकर स्कूल आता था, तीन किलोमीटर पैदल चलकर। तब तक यह सड़क बनी नहीं थी। स्कूल में बैंच-डेस्क बनवाए, बच्चों के लिए बैच ,बेल्ट और टाई खरीदवाई ताकि प्राइवेट स्कूल का लुक आ सके। साल दर साल छात्र संख्या बढ़ने लगी और तीन साल में प्रायवेट स्कूल बन्द हो गया और आज हमारे स्कूल में 250 बच्चे हैं।“’
निमाई चन्द के साथी बताते हैं कि जब बच्चे स्कूल नहीं आते हैं तो निमाई जी खुद घर-घर जाकर एक-एक बच्चे को साइकिल पर बिठाकर स्कूल लाते हैं। अब तो बच्चे मोटरसाइकिल पर लाए जाते हैं।
कुछ साल पहले एक दुर्घटना में निमाई चन्द की एक टाँग में फैक्चर हो गया था। तीन महीने के लिए प्लास्टर चढ़ा था। तब स्कूल में वे एकमात्र शिक्षक थे। समस्या स्कूल को नियमित चलाने की थी। निमाई चन्द सपरिवार स्कूल में आकर रहने लगे ताकि स्कूल चलता रहे और बच्चे पढ़ते रहें। वे शाम को बच्चों के लिए सहयोग कक्षा भी चलाने लगे। उन दिनों स्कूल पूरे दिन लगा रहता था। निमाई चन्द हँस कर कहने लगे, “‘अरे वह चार महीने कैसे कट गए पता भी नहीं चला और स्कूल का परिणाम भी बहुत अच्छा आया था।“’
जब दो शिक्षक लम्बी छुट्टी पर चले गए तो समुदाय ने पहल करके दो शिक्षिकाओं की नियुक्ति की, ताकि बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो। इनका मानदेय भी समुदाय स्वयं देता है। स्कूल की देखभाल और चौकीदारी भी आसपास बसे गाँव के लोग करते हैं।
निमाई चन्द बताते हैं, ‘पहले आए दिन स्कूल में चोरियाँ होती रहती थीं। यह बड़ी आम समस्या थी। मेरी नियुक्ति के बाद एक बार चोरी हुई। चोरों ने ताले तोड़कर सामान और रिकॉर्ड यहाँ-वहाँ फेंक दिए। सबने कहा पुलिस में शिकायत दर्ज करवाइए, पर मैंने मना कर दिया। सारे अभिभावकों को स्कूल में बुलाया और कहा कि यह करने वाला आपके बीच का ही कोई है। यह स्कूल आपके बच्चों का है,यदि यहाँ के रिकॉर्ड खो जाएँगे तो आपको कभी नहीं मिलेंगे। चोरी की घटनाएँ रोज-रोज होती रहीं तो सरकार स्कूल ही बन्द करवा देगी, फिर आपके बच्चे पढ़ने कहाँ जाएँगे। तब से आज तक कोई चोरी नहीं हुई।“’
हाल ही में इस स्कूल यानी राजकीय प्राथमिक विद्यालय मटियाई, ब्लॉक-सितारगंज, संकुल-बिरिया, जिला-उधमसिंह नगर, का पहला वार्षिक उत्सव मनाया गया। यह पूरे जिले के किसी भी सरकारी स्कूल में मनाया गया पहला वार्षिक उत्सव था। उत्सव के आयोजन के लिए समुदाय ने सहयोग राशि दी। कुछ संस्थाओं ने भी इसमें मदद की। इसमें बीडीओ,डीओ, स्थानीय विधायक सभी ने हिस्सा लिया। एक बार फिर जिले में स्कूल एक नए प्रयोग के चलते चर्चा में आ गया।
इस स्कूल से पढ़कर निकले बच्चे नवोदय स्कूल और पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं। निमाई चन्द माझी ने अपने दोनों बच्चों को भी इसी स्कूल में पढ़ाया है। अब वे दोनों नवोदय स्कूल में पढ़ रहे हैं।
हमने पूछा, ‘ऐसा क्या किया जाए जिससे समुदाय स्कूल में अपनी भागीदारी निभाए।‘ निमाई चन्द का मानना है कि यदि सरकार समुदाय का सहयोग लेकर समुदाय से ही शिक्षक रखे तो 80% समस्याओं का समाधान हो जाएगा। समुदाय खुद इनकी निगरानी भी करेगा।’
निमाई चन्द के प्रयासों के बारे में सोचते हुए मुझे एक कविता की दो लाइनें याद आ रहीं थीं-
पंख अपनी जगह पर वाजिब हैं,
हौसला ही उड़ान देता है
अज़ीमप्रेमजी इंस्टीट्यूट फॉर असेस्मन्ट एण्ड अक्रेडटैशन (Institute for Assessment and Accreditation)दिल्ली में कार्यरत रंजना ऊधमसिंह नगर अपने काम के सिलसिले में गईं थीं। वहाँ उन्होंने निमाई चन्द माझी के बारे में सुना और उनसे मुलाकात करने का मन बनाया। अज़ीमप्रेमजी इंस्टीट्यूट फॉर लर्निंग एण्ड डेवलपमेंट, ऊधमसिंह नगर के दो साथियों विजय मौर्य तथा दीपक पुरोहित के साथ उन्होंने इस स्कूल का दौरा किया। निमाई जी से बातचीत करके उन्होंने महसूस किया कि उनके प्रयासों की जानकारी और शिक्षक साथियों तक भी पहुँचनी चाहिए। यह रंजना द्वारा भेजे गए आलेख का राजेश उत्साही द्वारा सम्पादित रूप है। फोटो विजय मौर्य ने लिए हैं।