एक शिक्षिका ने एक विशेष प्रकार की गतिविधि से बच्चों पर ऐसा प्रभाव डाला है कि छोटे से गाँव के ज्यादातर मजदूर किसानों के बच्चे अपने बड़े बुजुर्गों के साथ सम्बन्धों का महत्त्व जान रहे हैं। ये बच्चे अपने मददगार व्यक्तियों के प्रति आभार जताने के नए तरीके सीख रहे हैं। साल में दो-तीन मौकों पर इस...
शैक्षिक दख़ल : अंक 10 जुलाई, 2017

Description:
शैक्षिक सरोकारों को समर्पित उत्तराखण्ड के शिक्षकों तथा नागरिकों के साझा मंच द्वारा प्रकाशित पत्रिका शैक्षिक दखल का दसवाँ अंक (जुलाई 2017) ‘स्कूल कुछ हटकर’ विषय पर केन्द्रित है। इस अंक में कुछ ऐसे स्कूलों से परिचय कराने की कोशिश की गई है, जो आम धारणा के स्कूलों से बिलकुल अलग हैं।इस अंक में जो सामग्री है उसका एक अन्दाजा इस सूची से लगाया जा सकता है :
अभिमत। स्वतंत्रता,संवाद और विश्वास : प्रारम्भ : महेश पुनेठा । हमें जेल नहीं स्कूलों की आवश्यकता है : फेसबुक परिचर्चा । जहाँ बच्चे अपने मनपसन्द विषय से अपना दिन शुरू करते हैं : रेखा चमोली । बाल हृदय की गहराईयों में पैठना शिक्षा का सार : चिंतामणि जोशी । शिक्षक का सबसे बड़ा गुण, छात्र के प्रति लगाव और समत्व : साक्षात्कार : ताराचन्द त्रिपाठी । मनमर्जी का स्कूल : अंशुल शर्मा । कोई स्वप्न नहीं, सच था नीलबाग : साक्षात्कार : राजाराम भादू । कुछ आशाएँ,कुछ शंकाएँ : राजीव जोशी। आजादी की जमीन पर फलते-फूलते : प्रमोद दीक्षित ‘मलय’। घर भी और स्कूल भी : देवेन्द्र मेवाड़ी । एक अजीब स्कूल : व्याख्यान : अनुपम मिश्र । बड़े होकर अच्छे नागरिक और अच्छा इंसान बनना चाहते हैं : सुनील । जहाँ न कक्षा और न परीक्षा : मीनाक्षी गाँधी । सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं का एक मॉडल : डॉ.केवलानन्द काण्डपाल । हर विषय पर अपने तरीके से सोचते हैं बच्चे : दिनेशसिंह रावत । साहित्य-संगीत-कला के तालमेल की मिसाल : नरेश पुनेठा । दुर्गम का अनोखा सरकारी स्कूल : देवेश जोशी । जहाँ छुट्टी के बाद भी बच्चे घर नहीं जाना चाहते : सुनीता । एक गाँधीवादी के शिक्षा में प्रयोग : और अन्त में : दिनेश कर्नाटक ।
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