एक शिक्षिका ने एक विशेष प्रकार की गतिविधि से बच्चों पर ऐसा प्रभाव डाला है कि छोटे से गाँव के ज्यादातर मजदूर किसानों के बच्चे अपने बड़े बुजुर्गों के साथ सम्बन्धों का महत्त्व जान रहे हैं। ये बच्चे अपने मददगार व्यक्तियों के प्रति आभार जताने के नए तरीके सीख रहे हैं। साल में दो-तीन मौकों पर इस...

शैक्षिक दख़ल : जुलाई, 2014 अंक में अपने शिक्षण अनुभवों को दर्ज करना भी एक जिम्मेदारी है : महेश पुनेठा । बच्चों को फेल करना समाधान नहीं है : एक परिचर्चा। उत्तराखण्ड में शिक्षा उद्यमिता : डॉ. अरुण कुकसाल । शिक्षा के सुधार कार्यक्रम एवं अध्यापक : डॉ.केवलानन्द काण्डपाल । बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाल साहित्य की भूमिका : डॉ. प्रभा पंत । बाल साहित्य और इलैक्ट्रोनिकी माध्यम : नवीन डिमरी ‘बादल’ । वह असफल लड़का : अंतोन चेखव की कहानी । किस्सा पहली डयूटी का : शेफाली पाण्डे । निरीक्षण में सामान्य प्रश्न की क्यों ? : रमेश चन्द्र जोशी
जहां विषयों की दीवारें टूट जाती हैं : शिक्षिका रेखा चमोली की डायरी। बेहतर समाज के निमार्ण में शिक्षक की भूमिका : श्याम गोपाल गुप्त । ‘स्लो लर्नर’ शब्द को डिफरेंट लर्नर बनाना है : नीलाम्बुज सिंह। ये बच्चे हैं या कुली : डॉ. दिनेश चन्द्र जोशी । गांव के स्कूल में आधुनिक तकनीक से पढ़ाता एक शिक्षक : नंद किशोर हटवाल । शिक्षा के सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश : राजीव जोशी
शिक्षा में माध्यम भाषा की भूमिका : संगोष्ठी रपट
क्या हम अपने विद्यार्थियों को जानते हैं ? : दिनेश कर्नावट

इस अंक में प्रमुख लेख हैं :
सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में परिवेशीय भाषा की भूमिका : महेश पुनेठा
शिक्षण का माध्यम मातृभाषा ही क्यों हो ?
मातृभाषा से समृद्ध होगी शिक्षा : मदन मोहन पाण्डेय
भाषा, बोलियॉं और वर्चस्व : राजाराम भादू
शिक्षण के माध्यम के रूप में भाषा : डॉ0 रमाकान्त राय
भाषा शिक्षण में लोकभाषा की भूमिका : दिनेश चन्द्र भट्ट 'गिरीश'
भाषा सीखना तभी हो सकता है जब शब्दों को अर्थ मिलें : हेमलता तिवारी
तथा अन्य लेख

'शैक्षिक दख़ल' के जून 2013 के अंक में ‘प्रारम्भिक शिक्षा में वैज्ञानिक चिंतन’ पर कमल महेन्द्रू का व्याख्यान; शिक्षक को सक्षम बनाने पर प्रेमपाल शर्मा से बिपिन कुमार शर्मा की बातचीत; स्कूल की संस्कृति पर राजाराम भादू का लेख; अध्यापक और बचपन के प्रसंगों पर प्रकाश मनु का संस्मरण; शिक्षक के रूप में मनोहर चमोली ‘मनु’ की डायरी; कक्षा-शिक्षण में ब्रेख्तियन शैली के प्रयोग पर मनोज पाण्डेय के अनुभवों के अलावा विविध सामग्री है।

'शैक्षिक दख़ल' के इस अंक में शिक्षाविद प्रोफेसर ए.के.जलालुद्दीन से बातचीत ‘पाठ को पढ़ना: बच्चों को सामर्थ्य सम्पन्न बनाने की ओर’; परिचर्चा ‘स्वाधीन हुए बिना रचनात्मकता सम्भव नहीं’; पाठ्यपुस्तकों के बोझ तले सिसकती रचनात्मकता (महेश पुनेठा); अध्यापक की स्वायत्तता एवं जवाबदेही में संतुलन आवश्यक (केवल काण्डपाल); स्कूली पाठ्यक्रम और कविता का भविष्य (मोहन श्रोत्रिय) ; इस पेशे में जीवन का आनन्द प्राप्त किया (हयात सिंह चौहान); रचनात्मकता के विकास में शिक्षक संगठनों की भूमिका (दिनेश भट्ट) जैसे महत्वपूर्ण आलेख हैं।
कविता,कहानी,संस्मरण तथा अन्य नियमित स्तम्भ भी हैं।

उत्तराखण्ड से एक अनियतकालीन पत्रिका शैक्षिक दख़ल का प्रकाशन आरम्भ हुआ है। पत्रिका के बारे में कहा गया है कि यह शैक्षिक सरोकारों को समर्पित शिक्षकों का सांझा मंच है। 44 पेज की पत्रिका में शैक्षिक विषयों पर उपयोगी लेख हैं। निश्चित ही यह पत्रिका शिक्षकों के बीच एक जगह बनाएगी। पत्रिका की पीडीएफ यहाँ पत्रिका के सम्पादकों के सौजन्य से उपलब्ध है।