एक शिक्षिका ने एक विशेष प्रकार की गतिविधि से बच्चों पर ऐसा प्रभाव डाला है कि छोटे से गाँव के ज्यादातर मजदूर किसानों के बच्चे अपने बड़े बुजुर्गों के साथ सम्बन्धों का महत्त्व जान रहे हैं। ये बच्चे अपने मददगार व्यक्तियों के प्रति आभार जताने के नए तरीके सीख रहे हैं। साल में दो-तीन मौकों पर इस...

शैक्षिक दख़ल : जनवरी 2020 अंक में
सीखने और मूल्य निमार्ण में समूह कार्य * महेश पुनेठा
सीखना एकाकी अथवा सामूहिक प्रक्रिया * फेसबुक परिचर्चा
समूह कार्य एक साझा प्रक्रिया है * अनुपमा तिवाड़ी
पीयर लर्निंग : एक विमर्श * डॉ. केवलानंद कांडपाल
समूह अधिगम * डॉ.निर्मल कुमार न्योलिया
संवाद * समझने तथा सृजन की दिशा
कौतुक : कहानी * जरोस्लावा ब्लाज्कोवा
बहकते-डगमगाते जलयान : बचपन के दिन * प्रभुदयाल हंस
सा विद्या या विमुक्तये : बचपन के दिन * संदीप नाईक
विषय से ज्यादा कठिन शिक्षक : संस्मरण * संदीप नाईक
शिक्षक एक, गतिविधि अनेक * भास्कर जोशी
कक्षा में बातचीत की खिड़की : बाल साहित्य * मनोहर मनु
रिमझिम भाग-एक : अनुभव अपने-अपने * रेखा चमोली
पीयर लर्निंग : अनुभव अपने-अपने * अशोक कुमार दास
भाषा कभी किसी रास्ते : चर्चा में * इन्द्रमणि उपाध्याय
बिन नम्बर सब सून * खेमकरण ‘सोमन’
पढ़ना कैसे अच्छा लगता है * बच्चों का नजरिया
नई शिक्षा नीति की प्रतीक्षा * दिनेश कर्नाटक

शैक्षिक दख़ल जुलाई 2019 अंक में डिब्बाबंद भोजन नहीं, बल्कि किचन है पाठ्यपुस्तक * महेश पुनेठा । फेसबुक परिचर्चा * क्या पाठ्यपुस्तक तथ्यों तथा सूचनाओं से भरी होनी चाहिए ?। संवाद * पाठ्यक्रम के अलावा पुस्तकें पढ़ना जरूरी । कहानी : सीलू मवासी का सपना * दिनेश भट्ट । इतिहास शिक्षण यानी ऐतिहासिक नजरिया विकसित करना * सी.एन.सुब्रह्मणयम । इतिहास : मनुष्य जाति की प्रयोगशाला * नंदकिशोर आचार्य । पाठ और पुस्तकें * कृष्ण कुमार । पाठ्यपुस्तक की प्रासंगिकता * डाँ. इसपाक अली । मात्र पाठ्यपुस्तक पर सवार होकर पढ़ना-लिखना संभव नहीं * कालू राम शर्मा । पाठ्यपुस्तकों की भाषा और ग्राह्यता * सविता प्रथमेश । बच्चों के करने के लिए बहुत कुछ * कमलेश जोशी । लघुकथा : सत्यमेव जयते * सीमा भाटिया । कक्षा में पाठ्यपुस्तक का उपयोग कैसे हो ? : डॉ. केवलानंद काण्डपाल । कसौटी पर एनसीईआरटी की विज्ञान पाठ्यपुस्तकें * डॉ. निर्मल कुमार न्योलिया । पाठ्यपुस्तक की समस्याओं को खोजने की कुंजी * अनुपमा तिवाड़ी । रिमझिम से बरसती हैं बच्चों की आवाजें * मनोहर चमोली ‘मनु’ । एक पाठ्यपुस्तक जिससे दिल लग जाए * प्रतिभा कटियार । शिक्षक की भूमिका तथा पाठ्यपुस्तकें * डॉ. दिनेश जोशी । सर्वे : आपको कौन सी पाठ्यपुस्तक पसंद है ?। कैसा हो, अगर पाठ्यपुस्तकें ही न हों ? * दिनेश कर्नाटक

गृहकार्य : कविता * सुंदर नौटियाल (प्रथम आवरण) । गृहकार्य : कविता * श्याम बहादुर नम्र ( दिद्वतीय आवरण) । एक होमवर्क ऐसा भी ( अंतिम आवरण ) । अभिमत। होमवर्क बनाम घरेलु कार्य : महेश पुनेठा। होमवर्क क्यों तथा क्यों नहीं : फेसबुक परिचर्चा । गृहकार्य के मायने * डॉ. केवलानंद काण्डपाल । बच्चों के लिए बोझ न हो गृहकार्य * अखिलेश यादव। बच्चों की शिक्षा में गृहकार्य की भूमिका * रेणु खत्री । होमवर्क के दबाव में रचनात्मकता * प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ । होमवर्क की एक बानगी * अनुपमा तिवारी। गृहकार्य से तौबा क्यों * सविता प्रथमेश । चिट्ठियों के रूप में गृहकार्य * देवेन्द्र मेवाड़ी । तीन लघुकथाएँ : चयन * राजेश उत्साही । यह बच्चा खेल क्यों नहीं रहा * ललित मोहन रयाल । मुस्कुराता गृहकार्य * सुनीता वर्मा । तुम घर में क्या काम करना चाहोगे * रेखा चमोली
बड़ा सिरदर्द है गृहकार्य * बच्चों का नजरिया । ये होमवर्क-होमवर्क क्या है * मुकेश प्रसाद बहुगुणा । अब गृहकार्य भी पैकेज * जयमाला देवलाल । कक्षा में किताब : कजरी गाय * कमलेश जोशी
। टयूशन में मेरा विज्ञान वर्ग * श्याम गोपाल गुप्ता । सरकारी शिक्षा का संकट, समाधान * संगोष्ठी । शिक्षा व्यवस्था * डॉ . अरुण कुकसाल । बाल साहित्य * मनोहर मनु। स्कूल का काम घर क्यों आए * दिनेश कर्नाटक

अभिमत । टयूशन या कोचिंग से ज्ञान सृजन संभव नहीं : महेश पुनेठा । एक शिक्षक के मायने : शिवरतन थानवी-सूर्यप्रकाश श्रीनागर । टयूशन के पीछे है, माँ-बाप की महत्वाकांक्षा का प्रेत : परिचर्चा
।बच्चों का मनोवैज्ञानिक हत्याकांड : लोगों की राय । क्विज मास्टर (कहानी) : पंकज मिश्रा। विद्यालय, टयूशन एवं रचनात्मकता : डॉ. केवलानंद कांडपाल । टयूशन,असल,नकद और सूद भी लेता है : मनोहर चमोली ‘मनु’ । प्रतियोगिताओं की दौड़ : अनुपमा तिवाड़ी । टयूशन/ कोचिंग के चक्रव्यूह और हमारे मासूम अभिमन्यु : प्रतिभा कटियार । गर छूना हो आसमां : सुनील शर्मा । भविष्य की कीमत पर वर्तमान की बलि : वंदना शुक्ला । टयूशन, शिक्षा और रचनात्मकता : विजय गौड़ । बोझ में तब्दील होता बस्ता : दिनेश रावत । टयूशन और शिक्षा का ताना-बाना : अखिलेश यादव। पुस्तकालय ने पठन-पाठन और लेखन का पैदा किया शौक : डॉ.(इंजी) आलोक सक्सेना। उच्च शिक्षा बनाम कोचिंग उद्योग का ताना बाना: डॉ. निर्मल कुमार न्योलिया। रचनात्मकता तथा बेहतर मानवीय समाज की राह : विमला कश्यप। फून सूक बांगड़ : शशि सिंह। क्या टयूशन किताबों से दोस्ती करा सकता है ? : नीरज पंत। तब बहुत कम बच्चे टयूशन जाते थे : बसंत गिरी। राष्ट्रीय बालरंग महोत्सव की एक झलक : रमेश चन्द्र जोशी । सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ाने वाले गुरुजी : डॉ. अरुण कुकसाल। इस बार का बालसाहित्य : मनोहर चमोली ‘मनु’। जन शिक्षा को निगलता टयूशन का बाजार : राजीव जोशी
टयूशन-कोचिंग का बाजार तथा पढ़ने-लिखने की संस्कृति : दिनेश कर्नाटक

शिक्षकों को ही अवसर तलाशने होंगे : महेश पुनेठा । स्कूल को समुदाय से कैसे जोड़ा जाए : फेसबुक परिचर्चा । यास्नाया पोल्याना : एक नामुमकिन सा सपना – रविकांत । बाल सहयोगी है गिजूभाई का दिवास्वप्न : मौहम्मद औवेश । नोहर चन्द्रा की पाठशाला : भास्कर चौधुरी । सृजन के मधुर गीत गाता एक विद्यालय : प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ । घण्टी एक तरह की गुलामी : विपिन जोशी । जहाँ बच्चे खुद करते हैं : राजीव जोशी । अकेले टेक्नोलॉजी नहीं है, स्कूलों की बीमारी का इलाज : कोंटारो टोमाया । कॉल सेन्टर (कहानी) : विजय गौड़ । एक झन्नाटेदार थप्पड़ (बचपन) : अनिल कार्की । बच्चों तथा विद्यालयों में रचनात्मकता : डॉ. नंद किशोर हटवाल । बच्चों की शिक्षा में बदलाव की जरूरत : रमेश उपाध्याय (साक्षात्कार) । जोशी सर, पुस्तकालय,दीवार पत्रिका और मैं : संजय कापड़ी । साठ घंटे की पाठशाला ( जीवन जागृति निकेतन विद्यालय) । शिक्षक के मनोविज्ञान का भी ध्यान रखना जरूरी : नितेश वर्मा
किताब पढ़ना यानि आगे बढ़ना (बाल साहित्य) : मनोहर मनु
क्या निजीकरण में है सरकारी शिक्षा का इलाज : दिनेश कर्नाटक

शैक्षिक सरोकारों को समर्पित उत्तराखण्ड के शिक्षकों तथा नागरिकों के साझा मंच द्वारा प्रकाशित पत्रिका शैक्षिक दखल का दसवाँ अंक (जुलाई 2017) ‘स्कूल कुछ हटकर’ विषय पर केन्द्रित है। इस अंक में कुछ ऐसे स्कूलों से परिचय कराने की कोशिश की गई है, जो आम धारणा के स्कूलों से बिलकुल अलग हैं।इस अंक में जो सामग्री है उसका एक अन्दाजा इस सूची से लगाया जा सकता है :
अभिमत। स्वतंत्रता,संवाद और विश्वास : प्रारम्भ : महेश पुनेठा । हमें जेल नहीं स्कूलों की आवश्यकता है : फेसबुक परिचर्चा । जहाँ बच्चे अपने मनपसन्द विषय से अपना दिन शुरू करते हैं : रेखा चमोली । बाल हृदय की गहराईयों में पैठना शिक्षा का सार : चिंतामणि जोशी । शिक्षक का सबसे बड़ा गुण, छात्र के प्रति लगाव और समत्व : साक्षात्कार : ताराचन्द त्रिपाठी । मनमर्जी का स्कूल : अंशुल शर्मा । कोई स्वप्न नहीं, सच था नीलबाग : साक्षात्कार : राजाराम भादू । कुछ आशाएँ,कुछ शंकाएँ : राजीव जोशी। आजादी की जमीन पर फलते-फूलते : प्रमोद दीक्षित ‘मलय’। घर भी और स्कूल भी : देवेन्द्र मेवाड़ी । एक अजीब स्कूल : व्याख्यान : अनुपम मिश्र । बड़े होकर अच्छे नागरिक और अच्छा इंसान बनना चाहते हैं : सुनील । जहाँ न कक्षा और न परीक्षा : मीनाक्षी गाँधी । सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं का एक मॉडल : डॉ.केवलानन्द काण्डपाल । हर विषय पर अपने तरीके से सोचते हैं बच्चे : दिनेशसिंह रावत । साहित्य-संगीत-कला के तालमेल की मिसाल : नरेश पुनेठा । दुर्गम का अनोखा सरकारी स्कूल : देवेश जोशी । जहाँ छुट्टी के बाद भी बच्चे घर नहीं जाना चाहते : सुनीता । एक गाँधीवादी के शिक्षा में प्रयोग : और अन्त में : दिनेश कर्नाटक ।

बच्चों के प्रश्नों को मरने न दें : महेश पुनेठा । प्रश्न न करने के पीछे का मनोविज्ञान : फेसबुक परिचर्चा । जब जवाब पता है तो सवाल क्यों ? : कालू राम शर्मा। उत्तर से मत डरिए, प्रश्न न पूछने से डरिए : देवेश जोशी । प्रश्न पूछने से हिचकिचाते बच्चे : कैलाश मंडलोई । बच्चे प्रश्न करने से क्यों डरते हैं ? : दिनेश कर्नाटक तथा अन्य उपयोगी लेख ।

पढ़ने की आदत को आंदोलन बनाने की जरूरत : महेश पुनेठा । हर शिक्षक के ज्ञान की सीमा होती है किताब : शरद चंद्र बेहार । बच्चे किताब नहीं पढ़ते, क्योंकि माता-पिता किताबें नहीं पढ़ते : जार्डन सैपाइरो । पढ़ने की संस्कृति मतलब किताब से दोस्ती : कैलाश मण्डलोई । लिखने के लिए पढ़ना जरूरी है : लोकेश ठाकुर । पढ़ने की संस्कृति में सहायक है दीवार पत्रिका : डॉ. केवलानंद कांडपाल
शैक्षिक गुणवत्ता बनाम पढ़ने-लिखने की संस्कृति : रमेशचन्द्र जोशी । पुस्तकें: मेरी दोस्त, मेरा ईश्वर : प्रेमपाल शर्मा । किताबों को पढ़ने का भी पाठ्यक्रम बनाना होगा : राजेश उत्साही से साक्षात्कार । विदेशों में पढ़ने की संस्कृति : डॉ.जीवनसिंह । एक कतरा उजास : सोनी मणि पाण्डेय । पुस्तक संस्कृति विकसित करने की जरूरत है : राजीव जोशी । कहानी : कैद में किताबें : दिनेश कर्नाटक

शैक्षिक दख़ल : अंक 6 ( जुलाई 2015) में
प्रारम्भ * भयमुक्त वातावरण : विचार और वास्तविकता * महेश चन्द्र पुनेठा। आलेख * स्कूली बच्चों में भय, तनाव एवं दुश्चिंता के प्रभाव * डॉ. केवलानंद कांडपाल । शिक्षा और भय * डॉ.शशांक शुक्ला । गौर तलब * गंभीर खतरे में स्कूल * रोहित धनकर। परिचर्चा * कैसा है भय और शिक्षा का रिश्ता ।कहानी * जाग तुझको दूर जाना * बिपिन कुमार शर्मा। बचपन * न इधर के रहे, न उधर के * जावेद उस्मानी । अनुभव * बिन पुस्तक जीवन ऐसा, बिन खिड़की घर जैसा * आकाश सारस्वत । भाषा की कक्षा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं अवसर * प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ । स्कूल में नाटक * रेखा चमोली। हर बच्चे में मुझे अपना बच्चा दिखता है * रामकिशोर पाण्डेय । परिसंवाद * सृजनात्मक लेखन के विकास में कार्यशालाओं की भूमिका * राजेश उत्साही । नजरिया * शिक्षक के लिए आवश्यक है बच्चों को समझना * रमेश चन्द्र जोशी। विचार * अपने सपने को जिंदा रखना होगा * आशुतोष भाकुनी ।अध्ययन * बालमन की पड़ताल * राहुल देव। पेंरेटिंग * पापा, वे ऐसे लहरा के क्यों चलते हैं ? * स्वतंत्र मिश्र ।संवाद * भय के बारे में बच्चे क्या सोचते हैं ? * बालसंवाद। अखबारों से * डॉ. दिनेश चन्द्र जोशी ।मिसाल * रमेश धारू : एक चलते-फिरते गतिविधि केन्द्र * अर्जुन सिंह। इस बार की पुस्तक * आज तुमने स्कूल में क्या पूछा? *राजीव जोशी। और अंत में * हम किस ओर जाना चाहते हैं ? * दिनेश कर्नाटक